Thursday, July 30, 2020

हाँ मैं SALESMAN हूँ

हाँ  मैं  SALESMAN हूँ 

COMPANY का संवाद हूँ 
PRODUCT की आवाज़ हूँ 
विश्वास की पहचान हूँ      
हाँ  मैं  SALESMAN हूँ। 
कश्ती का  मांझी हूँ 
CUSTOMER का साथी हूँ 
COMPANY का सारथी हूँ 
हाँ  मैं  SALESMAN  हूँ। 
विश्वाश का दूसरा नाम हूँ 
CUSTOMER की मुस्कान हूँ 
संघर्षो का सुल्तान हूँ 
हाँ  मैं  SALESMAN हूँ। 
फिरता हूँ ज्येष्ठ दुपहरी में 
भींगता हूँ बारिश की बूँदो में 
ठिठुरता हूँ सर्दियों की शीतलहरी में 
टहलता हूँ शहर की गलियों में 
हाँ  मैं  SALESMAN  हूँ। 
कुछ ने हमें बदनाम किया 
काम को बेईमान किया 
झूँठ से सरोकार किया 
शब्दो से तिरस्कार किया 
पर मैं  धैर्य की मिसाल हूँ 
लावा की धार हूँ 
COMPANY का जवाब हूँ  
हाँ  मैं  SALESMAN हूँ। 
गर्व है कर्म पर 
कर्म की पहचान हूँ 
न देख तिरछी नज़रों से 
मैं भी एक इंसान हूँ 
तुच्छ समझने की भूल न कर 
शिव की तीसरी आँख हूँ 
उड़ते पंछी सा आज़ाद हूँ 
हाँ  गर्व से कहता हूँ 
हाँ  मैं  SALESMAN हूँ।  .......................................... अभय मिश्र "आज़ाद "     









Sunday, June 28, 2020

मुझे यहाँ रहना होगा

कल तक पास था मै उनके,  उन्हें रुलाता था
यह सोच मै अब तड़पता हूँ
गैरों की इस नगरी में ,अपनों के लिए तरसता  हूँ
आँखो से अश्रु की धारा होती है प्रवाहित
सपनो के लिए उसे रोकता हूँ
सोचता है मेरा मन अगर मैं कमजोर होजाऊगा
पापा के ख्वाबों को कैसे पूरा कर पाउँगा ,
अपनों को उम्मीद है काफ़ी
कैसे खरा उतर पाउँगा
गैरो की इस नगरी से  मुझे लड़ना ही होगा
कमज़ोर तन्हा मन से टकराना होगा
ख्वाबों को हकीकत की में बदलना ही होगा
मुझे यहाँ रहना ही होगा
मुझे यहाँ रहना ही होगा

 ................... .................  ................... .................  .... .......  अभय मिश्र "आज़ाद "

बहार बन के जाऊंगा

वीरान  बन के आया था , बहार  बन के जाऊंगा 
आज की महफ़िल में प्यार की शमा जला जाऊंगा ,
वीरान  बन के आया था , बहार  बन के जाऊंगा 
इन पलो में कुछ गम भी मिले 
उस गम को भुला जाऊंगा 
इस मंदिर से सिर्फ खुशियों को ले जाऊंगा ,
कुछ दोस्त मिल गए थे 
कुछ यूं ही रूठ गए थे 
उनके दिल में जगह बना कर जाऊंगा 
उन्हें दिल में बसा के ले जाऊंगा 
वीरान  बन के आया था , बहार  बन के जाऊंगा 
जाते- जाते इस विद्या मंदिर के भगवान को 
दिल में सजा के ले जाऊंगा ,
भगवान के दिल में जगह बनाकर जाऊंगा 
जा रहा हूँ मंदिर को छोड़ ,दिल में रुदन हो रही हैं 
क्या करू मेरी मंजिल मुझे आवाज़ दे रही हैं 
मंजिल को जो न पा सका ,जीवन अधूरा रह जाएगा 
मेरा हर ख्वाब बिखर जाएगा 
छोड़ता हूँ इस मंदिर को 
करता हूँ नमन इसको 
वीरान  बन के आया था , बहार  बन के जाऊंगा 
अंत में करुँगा गुरुवों से प्रार्थना 
ऊपर वाले से करे वे हम सब की भी प्रार्थना 
वीरान  बन के आया था , बहार  बन के जाऊंगा 
आज की महफ़िल में प्यार की शमा जला जाऊंगा ,

.................................................................................अभय मिश्र "आज़ाद "




होली की पावन बेला

होली की पावन बेला पर 
लोगों ने प्रेम रंग बरसाया ,
हर कटुता को त्याग
प्रेम - सौहार्द को गले लगाया ,
जीवन के अवगुण को त्याग
गुणवान जीवन को अपनाया ,
होली की पावन बेला पर 
लोगों ने प्रेम रंग बरसाया ,
धर्म - जाति ,ऊँच -नीच के भेद को बिसार
लोगो ने होली धर्म अपनाया
पावन वसुन्धरा को प्रेम रंग में
पुनः लोगो नहलाया ,
होली की पावन बेला पर 
लोगों ने प्रेम रंग बरसाया ,
बरसों से प्रेम ऋतु से तरस रही
इस धरा में प्रेम ऋतु वापस आया
फ़ागुन के इस त्यौहार ने
मन में प्रेम का अगन जलाया
होली की पावन बेला पर 
लोगों ने प्रेम रंग बरसाया ,
फाग की इस मधुरता में
भारत हुआ लीन
प्रेम रंग में भारतवासी
आज हुआ विलीन ,
होली की पावन बेला पर 
लोगों ने प्रेम रंग बरसाया 

                                                 अभय मिश्र "आज़ाद "



Saturday, March 29, 2014

Hum Bawafa The Is Liye humko ye saja mile,
Shayad Umhe Talash  The Kisi Bewafa Ki Thi
हम बावफ़ा थे इसलिए हमको ये सजा मिली ,शायद उन्हें तलाश थी किसी बेवफ़ा की 

उजाला नज़र नहीं आता

"चहु ऒर अँधेरे से घिर गया हु कही दूर तक उजाला नज़र नहीं आता
इस शहर मे कोई अपना नज़र नहीं आता "
लेख़क :-अभय कुमार मिश्र (आज़ाद )

मैंने पलट कर जवाब दिया

आज किसी ने  चन्द्रशेखर आज़ाद का फ़ोटो देख कर मुझसे कहा- ये कौन है ?
 मुझे थोड़ा दुःख हुआ और हँसी भी आई.…… मैंने पलट कर जवाब  दिया ये वो है जिन्हें ये देश भुला दे रहा हैं।  क्यों कि इनके नाम के आगे गाँधी नहीं लिखा हैं।
शायद आज लोग चन्द्रशेखर आज़ाद ,भगत सिंह ,राजगुरु,सुखदेव ,रामप्रसाद बिस्मिल ,अशफ़ाक उल्ला खान ,खुदीराम बोस ,गणेश शंकर विध्यार्थी ,दुर्गा  भाभी जैसे महान योद्धा को न ही जानना चाहते है और न ही मानना चाहते हैं पर कल भी वो महान थे और कल भी महान ही रहेगे। 
मुझे नहीं मालूम कि इस घटना पर मेरी प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए। पर ना  जाने क्यों दिल को दुःख हुआ।

" मिट गए आज़ाद,भगत,बिस्मिल इस देश के नाम पर
दुर्भाग्य देखो इस देश का
आज कोई  नाम लेने वाला भी नहीं,
नाराज नहीं होता वो शहीदे  आज़म, परेशान  है,
मुल्क़ को मुल्क़ वाले ही लूट गए।
कल रंज था उन गोरो से आज अपने ही अपनों से टूट गए।
मेरा भगत आसमां से देखता होगा ,आज़ाद से कह कर सिसकता होगा।
क्या हुआ उस मुल्क का जिस पर हम सब कुर्बान कर गए। 
……………………………… लेख़क :- अभय मिश्रा "आज़ाद"