Sunday, June 28, 2020

मुझे यहाँ रहना होगा

कल तक पास था मै उनके,  उन्हें रुलाता था
यह सोच मै अब तड़पता हूँ
गैरों की इस नगरी में ,अपनों के लिए तरसता  हूँ
आँखो से अश्रु की धारा होती है प्रवाहित
सपनो के लिए उसे रोकता हूँ
सोचता है मेरा मन अगर मैं कमजोर होजाऊगा
पापा के ख्वाबों को कैसे पूरा कर पाउँगा ,
अपनों को उम्मीद है काफ़ी
कैसे खरा उतर पाउँगा
गैरो की इस नगरी से  मुझे लड़ना ही होगा
कमज़ोर तन्हा मन से टकराना होगा
ख्वाबों को हकीकत की में बदलना ही होगा
मुझे यहाँ रहना ही होगा
मुझे यहाँ रहना ही होगा

 ................... .................  ................... .................  .... .......  अभय मिश्र "आज़ाद "

No comments:

Post a Comment